धर्म का पहला बिन्दु है-अतीन्द्रिय चेतना। इन्द्रिय चेतना वाला धर्म का मूल्य नहीं आंका जा सकता। धार्मिक वहीं होता है, जो मूत्र्त के साथ अमूत्र्त का भी मूल्यांकन करता है। मनुष्य सामाजिक है। वह समाज से बनता है। अभिव्यक्ति की दृष्टि से यह सच्चाई है। अस्तित्व की दृष्टि से यह सत्य नहीं है।