आचार्यश्री महाप्रज्ञ के व्यक्तित्व के अनेक रूप थे। जिसमें योगी और ध्यानी, मुनि और मनस्वी, विनम्र, अनुशासित और समर्पित शिष्य, गुरू और अनुशास्ता, मौलिक साहित्य सृष्टा और अन्वेषक तथा महान यायावर और युगीन समस्याओं के समाधायक का था। वस्तुतः नब्बे वर्ष तक जलने वाली अध्यात्म की ऐसी अखंड ज्योति थी जिसके जीवन का हर क्षण आलोकमय और प्रभास्वर रहा। ऐसे योगी और विरल व्यक्तित्व को उनके जन्म शताब्दी के अवसर पर जानने के लिए पढें