शांति चेतना की नकारात्मक स्थिति नहीं है। वह मन की मूच्र्छा नहीं है। वह अन्तःकरण की क्रियात्मक शक्ति है। अन्तःकरण जब अन्तःकरण को स्पर्श करता है, मन जब मन में विलीन होता है और चैतन्य का दीप जब चैतन्य से प्रदीप्त होता है तब क्रियात्मक शक्ति प्रकट होती है वही है मन की शांति। हम अपनी चेतना के द्वारा मन की शांति को कैसे प्राप्त कर सकते है, को जानने के लिए जानने के लिए पढ़े आचार्यश्री महाप्रज्ञ की महत्वपूर्ण कृति मैं मेरा मन मेरी शांति