भारतीय अध्यात्म परम्परा में परमात्मा और सगुरू की भक्ति/स्तुति को बहुत महत्त्व दिया गया। वस्तुतः परम के प्रति समर्पण और एकनिष्ठ प्रेम की अभिव्यक्ति ही भक्ति है। अध्यात्म की इसी पवित्र भूमिका पर सतोत्र एवं स्तुति काव्यों की रचना हुई। कल्याण मन्दिर सोत्र की रचना भी इसी भाव-भूमि पर की गई।