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Mahapragya Vaangmay-055 (Soya Mann Jag Jae) (महाप्रज्ञ वांग्मय-055 (सोया मन जग जाए))

Author: Acharya Mahapragya
Category: Mahapragya Vangmay
Released: 2019
Language: Hindi
Pages: 0
350 (Inclusive all of Taxes)
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मन का अस्तित्व दो चरणों में है यह सोता भी है और जागता भी है। यदि वह सोया नहीं है और जागता रहता है तो इस संदर्भ में मन का अर्थ- ध्यानशक्ति धारित मनुष्य सत्य को सुनता है, उसे पता है लेकिन उस पर विचार नहीं करता है। ध्यान के अभाव में वह नहीं जान पाता है जो सत्य दिख रहा है वह सत्य नहीं है। यह अनुभव के स्तर पर नहीं है।
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