मनुष्य में तीन दुर्बलताएं होतीहैं-क्रूरता, विषमता और स्वयं का हानी पहुंचाने वाली प्रवृति। मनुष्य होना और सही अर्थ में मनुष्य होना बिल्कुल दो बातें है। आकार-प्रकार जाति से मनुष्य हूं। किन्तु मनुष्यता का विकास नहीं होता तब तक मनुष्य हाने की बात सदा सामने रहती है।