मनुष्य आज अनेक दिशाओं में अकल्पित प्रगति कर रहा है पर पर्यावरण संकट के रूप में वह ऐसे खतरनाक बिन्दु पर भी पहुंच रहा है जहा विकास की सारी यात्रा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। दुनिया में अपना एक निश्चित संतुलन है। फिर भी मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो प्राकृतिक व्यवस्था को लांघकर अपने असंयम से या वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर कुछ ऐसा प्रयत्न कर रहा है जो इस सहज संतुलन को बिगड़ने का खतरा पैदा हो रहा हैै।